बह रही नदी आज
सोई अलसाई सी
रूचि कुछ अनमनी
पर छेड़ता है उसे
चंचल चपल वात
लहरें कुछ प्रगट हुईं
मन लहराया कुछ
ओढली नदी ने तभी
लहरदार .....चूनरी
उषाचुम्बित झिलमिली
सतरंगी ..... चूनरी
वही अनमनी रूचि
नृत्य करने लगी
लहरें सब दौड़ दौड़
क्रीडा करने लगी
मिलती गले से एक
रूठ जाती दूसरी
दूसरी के पीछे एक
दूर तक दौड़ती
लहरों में खौलता
बूँद बूँद जगमगाता
सौन्दर्य उबल उठा
सोया सौन्दर्य जगा
रूपराशि निखर उठी
निश्चय ही बिखर उठी
प्रेमिल स्पर्श से !
- डॉ. कृपा शंकर अवस्थी
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें
very good post.thanx!
जवाब देंहटाएंइस सुंदर नए से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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