गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

दयालुता की मृत्यु

जानी पहचानी बाज़ार में
सब दिन सी शाम आज भी
सब दिन सी भीड़ आज भी
करों की इस रेल पेल में
सड़क दौड़ती सी कुछ लगती
जगमग करती सभी दुकाने
और वहीं पटरी पर यह क्या ?
यहाँ पड़ी है गाय एक
जो तड़प चुकी दम तोड़ रही
हड्डी हड्डी ऊपर निकली
गर्दन पीछे घूम गयी है
बड़ी बड़ी दो आँखें
जिनमें द्रष्टि नहीं
निकली सी पड़ती
शीशे जैसी चमक रही हैं
एक पैर अब भी हिलता कुछ
उसी पैर से सटी हुयी
बैठी उसकी छोटी बछिया
शायद बैठी सोच रही हो
मेरी गैय्या, मेरी मैय्या
सोई गहरी नींद आज
बस आब उठती
अब दूध पिलाती
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कल कुछ नहीं वहां पर होगा
पर अवश्य ही मेरे मन पर
एक लकीर खिचीं पत्थर की
जो चिल्ला कर कहती रहती
तुम जिसको ईश्वर कहते हो
उसमें दया कृपा बस उतनी
जितनी दया कृपा बिजली में
और आणुविक उर्जा में
और कहूँ क्या गौभक्तों को
बन्दे खुदा को , ईशा की करुना वालों को
एक नज़र भी नहीं किसी ने देखा यह सब
करना तो बहुत दूर
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मैंने आज दांत पीसे हैं
आपने लाखों हमवतनो पर
चलो आज हो गया फैसला
आज शाम को दया मर गयी
और दयामय की दयालुता
बन बैठा है उनका वारिस
चट्टानी कर्त्तव्य वज्र सा
फौलादी कर्त्तव्य वज्र सा
जो उतना निश्दुर सशक्त
जितनी उर्जा , जितना ईश्वर
लेखक : डॉ० कृपा शंकर अवस्थी


मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन


तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन
तुम अमृत रस मैं 'प्यासा मन'
मेरी तृष्णा बेकल-बेकल
तुम सरिता सी चंचल चंचल
इस सागर तक तुम आ जाओ
स्वीकार करो ये निमंत्रण
तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन तुम
ग़ज़ल हो या हो ताजमहल
जो तुम्हें निहारे पल दर पल
मुझसे भी ज्यादा खुशकिस्मत
वो काँच का टुकड़ा, वो दरपन
तुम प्रणय-पुष्प और मैं गुंजन
तुम प्रीत का कोई गीत कहो
कभी मुझको भी मनमीत कहो
मुझा से न सही मेरी कविता से
इक बार तो कर लो आलिंगन
तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन
ये मन है स्वप्न सजाता है
कभी रोता है कभी गाता है
इस मन की बात समझ लो तुम
बांधो न भले कोई बंधन
तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन

लेखक : श्री विलास पंडित 'मुसाफिर'

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

आगाज़

आज मैं आपना ब्लॉग श्री हरीवंश रॉय बच्चन जी की इन पंक्तियों के द्वारा शुरू कर रहा हूँ

वृक्ष हो भले खड़े,हो घने, हो बड़े,एक पत्र छाँह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ

तू थकेगा कभी,तू थमेगा कभी,तू मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ

यह महान दृश्य है,चल रहा मनुष्य है,अश्रु, स्वेद, रक्त से,

लथपथ, लथपथ, लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ