मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन


तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन
तुम अमृत रस मैं 'प्यासा मन'
मेरी तृष्णा बेकल-बेकल
तुम सरिता सी चंचल चंचल
इस सागर तक तुम आ जाओ
स्वीकार करो ये निमंत्रण
तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन तुम
ग़ज़ल हो या हो ताजमहल
जो तुम्हें निहारे पल दर पल
मुझसे भी ज्यादा खुशकिस्मत
वो काँच का टुकड़ा, वो दरपन
तुम प्रणय-पुष्प और मैं गुंजन
तुम प्रीत का कोई गीत कहो
कभी मुझको भी मनमीत कहो
मुझा से न सही मेरी कविता से
इक बार तो कर लो आलिंगन
तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन
ये मन है स्वप्न सजाता है
कभी रोता है कभी गाता है
इस मन की बात समझ लो तुम
बांधो न भले कोई बंधन
तुम प्रणय पुष्प और मैं गुंजन

लेखक : श्री विलास पंडित 'मुसाफिर'

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